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________________ (११३) नाभेका शास्त्रार्थ । ___ ढूंढियोंसे ६ प्रश्न । (१) जैनमतके शास्त्रानुसार जैनमतके साधुका भेष कैसा होना चाहिये अर्थात् साधु को कौन कौन चीज़ ज़रूरी चाहिये और किस किस कारण के वास्ते रखनी चाहिये जिनमें उनकी कितनी ? सूतकी कितनी इत्यादि, इसमें इस बातका भी निर्णय हो जावेगा कि मुख दिनरात बँधा रहे या खुला ही रहे ॥ नोट-इस प्रश्नका मतलब यह है कि ढूँढिये साधु एक कपड़े के टुकड़े को डोरेमें पाकर कानों के साथ लटका कर मुख को दिन रात बाँध रखते हैं सो जैनमत के शास्त्रों से बिलकुल विरुद्ध है। (२) दिशा पिशाब होकर शुचि करनी चाहिये या नहीं ? यदि करनी चाहिये तो ढूँढिये साधु रात्रि को पानी बिलकुल नहीं रखते ह सो जब दिशा पिशाब होते हैं तब क्या करते हैं ? __ नोट-इस प्रश्न का मतलब यह है कि दूँढिये साधु रात्रि को जंगल जाते हैं तो पानी विना शुचि कैसे करते होंगे, बुद्धिमान् आप ही विचार लेंवे । लज्जा के कारण इस बात को साफ साफ जाहिर नहीं करते हैं, जब कोई पूछता है तो कहते हैं जतन करते हैं सो न जाने क्या जतन करते हैं ? यदि इस बात में किसी को शंका होवे तो वह दूँढिये साधु साध्वीको चौबीस तीर्थकरकी कस्म देकर तहकीकात कर सकता है। . (३) जूठे बर्तनों का मैला पानी साधु को लेना योग्य है या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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