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________________ (११४) नहीं ? ढूंढिये मैला पानी लेते और पीते हैं । आम लोग प्रायः जानते हैं। ( ४ ) शास्त्र कितने मानने और उसमें क्या प्रमाण है ? नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका आदि प्राचीन अर्थ मानने. या नहीं ? व्याकरणादि का पढ़ना योग्य है या नहीं ? यद्यपि ढूँढिये इन बातोंको नहीं मानते हैं परन्तु जैनशास्त्र क्या फरमाता है सो देखना योग्य है। (५) सूतक पातक मानना चाहिये कि नहीं ? उस घर का आहार पानी लेना योग्य है या नहीं ? ढूंढिये इन बातों का परहेज नहीं करते हैं। (६) जैनमत के शास्त्रानु सार गृहस्थी को इष्टदेव की मूर्ति का पूजन करना योग्य है या नहीं ? ___ पूर्वोक्त ६ प्रश्नों का जैनशास्त्रानुसार कोई भी उत्तर दूँढियोंकी तरफ से नहीं मिला है। इस वास्ते न्यायवान् सत्य को पसंद करनेवाले धर्मात्मा महाराजा साहिब H. H. महाराजा हीरासिंह बहादुर नाभापति के पंडितगण ने अपने न्यायशील धर्मात्मा स्वामी महाराजा साहिब की आज्ञानुसार पूर्ण विचार करके फैसला लिखकर रजिस्टरी कराके मुकाम रायकोट जिला लुधियाने में लाला देवीचंद चंबाराम की मार्फत महाराज श्रीवल्लभविजयजी को भेजा । पढ़कर उन महात्माने वह फैसला सर्वके लाभार्थ हमको भेज दिया । हमने देखकर जो कुछ आनंद मनाया, परमात्मा ही जानते हैं। जिह्वा से कहा नहीं जाता है और लेखनी से लिखा नहीं जाता है। यदि हमारे उस आनंद का किसी को अनुभव करना हो तो वह इस फैसले के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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