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________________ (८१) जमाना प्रायः सुधरा हुआ और सत्यका ग्राहक हो रहा है। सैंकड़ों मनुष्य असली शुद्ध तत्वको चाहनेवाले आपको मिलेंगे; मगर शांतिपूर्वक उन्हें समझानेकी जरूरत है। मेरा कहना यह नहीं मानता है, इसलिये यह नास्तिक है । इसके साथ बात करनी योग्य नहीं है। ऐसी ऐसी तुच्छताको अपने दिलमें स्थान ही नहीं देना चाहिये । जबतक अगलेके दिलकी तसल्ली न हो वो एकदम आपके कहनेको कैसे स्वीकार कर सकता है ? यदि आपके कथनको सत्यही सत्य मानता चला जावे तो उसका समझाना ही क्या। वो तो आगेही श्रद्धालु होनेसे समझा हुआ है । मैं मानता हूँ कि, भगवान् श्रीमहावीरस्वामीजी तथा श्रीगौतमस्वामीजीका बयान ऐसे मौके पर ख्याल करना अनुचित नहीं समझा जायगा । श्रीगौतमस्वामी श्रीमहावीरस्वामीके पास किस इरादेसे आये थे ? परंतु श्रीमहावीरस्वामीके शांत उपदेशसे उनकी शंकाओंका योग्य समाधान होनेसे सत्य वस्तु झट ग्रहण करली । यहाँ श्रीमहावीरस्वामीने यह ख्याल नहीं किया है कि, यह वादी बनकर आया है, इससे क्या बोलना । बलकि हे इंद्रभूते ! हे गौतम ! इत्यादि मिष्ट वचनोंसे आमंत्रण देकर उनको समझाया । जबकि, हमतुम वीरपुत्र कहाते हैं तो वीर अपने पिताश्रीका अनुकरण करना हम तुमको योग्य है न कि, अननुकरण । इस लिये शांतिके साथ अनुग्रह बुद्धिसे यदि उन लोगोंको धर्मके तत्व तथा धर्मका रहस्य समझाया जावे तो मैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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