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________________ (८२) यकीन करता हूँ कि आपको बड़ा ही भारी लाभ होवे । • महाशयो। प्रतापी गवर्मेटके शांतिमय राज्यमें यह शांतिमय जमाना वहते गंगाके निर्मल पानीकी तरह है। जितना जिससे पिया जावे पी लो । कोई रोकनेवाला नहीं । हरएक धर्मवाला अपने अपने धर्मके तत्वोंको समझानेके लिये जगह जगह जाहिर व्याख्यान देता नजर आ रहा है । अगर इससे वंचित है तो केवल जैनसमाज ही है । अपने पूर्वर्षि महात्माओंने जो लाखों जीवोंको जैनधर्मके अनुयायी बनाया है, वो केवल उपाश्रयमेंही बैठकर नहीं बनाया; किंतु राजदरबार आदि अन्यान्य स्थानों में उपदेश देकरके ही बनाया है। यदि वे महात्मा आजकलकी तरह उपाश्रयमें ही बैठे रहते तो, कईएक राजा महाराजा सामंत मंत्री शेठ शाहुकार व अन्य लाखों मनुष्य जैनधर्मी किस तरह होते ? भगवान् महावीरस्वामीने जैनधर्मका कंट्राक्ट ( ठेका ) किसी खास अमुक व्यक्ति या जातिको नहीं दिया है। किंतु उन्होंने तो दुनियाके उपकारार्थ धर्म फरमाया है । जैनधर्म अमुक जाति या अमुक देशका नहीं है। जैनधर्म सारे जगत्का धर्म है । जरा चारों ओर विचारदृष्टिको फिराकर देखोगे स्वतः मालुम हो जायगा। दयाकी बाबत जनधर्मकी छाप हरएक दुनियाके धर्मपर कैसी जबर बैठी है । जो लोग पक्षपातके गेहरे गढ़ेमें गिरे हुए हैं उनको भी अपनी कलम व ज़बान मुबारिकसे जाहिर करना पड़ता है कि, दयाकी बाबतमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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