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________________ (८०) कर घने भोले जीव अलभ्य लाभसे वंचित रहते हैं। तो उनको ऐसा समय ही न मिले इस प्रकारकी व्यवस्थाका करना जानकार श्रावकोंका कर्त्तव्य समझा जाता है । मतलब कि, जिस तरह हो सके अपनी वृत्तिकी रक्षापूर्वक जाहिर व्याख्यानद्वारा लोगोंको फायदा पहुँचानेका और अन्य समाजोंमें जाकर स्वयं किसी न किसी बातका फायदा लेनेका या समाजस्थ सभ्य लोगोंको फायदा देनेका ख्याल अवश्य रखना चाहिये । ऐसा होनेसे पूर्ण आशा है कि, मात्र उपाश्रयमें ही बैठकर केवल श्राद्ध वर्गके आगे उपदेश दिया जाता है उससे कईगुणा अधिक लाम होगा। यदि एक जीवको भी शुद्ध धर्मके तत्वका श्रद्धान होजावे तो मेरा ख्याल है कि सारा जिंदगीका दिया उपदेश सफल हो जावे । बाकी जो श्राद्ध वर्ग है सो तो है ही. परंतु उसमें भी विद्याभ्यासकी खामीके कारण परमार्थको समझनेवाले प्रायः थोड़े ही निकलेंगे। घने तो केवल जी महाराजही, कहनेवाले होगें। यह बात कोई आप लोगोंसे छिपी हुई नहीं है। इस लिये, जमानेकी तर्फ दृष्टि करनी अपना फरज समझा जाता है । शास्त्रकारोंका भी फरमान द्रव्यक्षेत्रकाल भावानुसार वर्तन करनेका नजर आता है। ऐसा होनेपर भी यदि जमानेको मान न दिया जावे तो मैं कह सकता हूँ कि उसने शास्त्र या शास्त्रकारोंको मान नहीं दिया। आप जानते हैं आजकलका जमाना कैसा है ? आजकलका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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