SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 656
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७९) बेदरकारीसे कहो, अन्य जिस किसीका दाव लगा उसने अपने तत्वको समझाकर अपने पीछे लगा लिया। जिनमें कितनेक लोग तो जैनधर्मके तत्वोंसे अनभिज्ञ होनेसे ही अन्यके पीछे लग जाते हैं। और कितनेक एक दूसरेकी देखादेखी । यही हाल अब भी चल रहा है तथापि नैनोंकी आँखें नहीं खुलतीं । कितनेक लोग जैन धर्मके तत्वको विना समझे कुछ अन्यका अन्य ही पुस्तकोंमें लिखकर विना किसीको दिखाये अपनी मरजीमें आया वैसा ऊटपटांगसा छपवाकर एकदम जाहिर करदेते हैं । जिसका परिणाम जैनधर्मपरसे लोगोंकी श्रद्धा उठ जानेका हो जाता है। इस लिये यदि जाहिर व्याख्यानद्वारा जैनधर्मके तत्व लोगोंके सुननेमें आवे तो आशा की जाती है कि, घने लोगोंको अपनी भूल सुधारनेका मौका मिलजावे। यह कोई बात नहीं है कि, आप लोग बाजारमें खड़े होकर ही सुनावे । बेशक । जिस प्रकार उपाश्रयमें बैठकर सुनाते हैं उसी तरह सुनावें, मगर स्थान ऐसा साधारण होवे कि जहाँ आनेसे कोई भी झिझक न जावे । यद्यपि उपाश्रय ऐसा साधारण स्थान ही होता है क्यों कि, उसपर किसीकी खास मालकियत नहीं होती है, तथापि लोगोंमें खास करके यही बात प्रचलित हो रही है कि, उपाश्रय अमुक एक व्यक्तिका है । हम वहाँ किसतरह जावें । कदापि गये और किसीने कह दिया कि, क्यों साहिब ! आप यहां क्यों आये ? इत्यादि कई प्रकारकी कल्पनाएँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy