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(७८) दूसरा दिन ।
-10000/बराबर दो बजे सभापति श्रीआचार्य महाराजजी मुनिमंडल सहित आबिराजे । श्रावकश्राविका वा अन्य प्रेक्षकगणोंसे स्थान उसी प्रकार भर गया।
प्रस्ताव तेरहवाँ। __ साधुके आचार विचारमें किसी प्रकारकी हानि न आवे इस रीतिपर अपने साधुओंको जैनोंसे अतिरिक्त अन्य लोगोंको भी जाहिर व्याख्यानद्वारा लाभ देनेका रिवाज रखना चाहिये, तथा और किसीका व्याख्यान पबलिकमें जाहिर तरीके होता हो तो उसमें भी, द्रव्य, क्षेत्र काल, भावको देखकर साधुको जानेके लिये छूट होनी चाहिये । हाँ इतना जरूर होवे कि,हर दो कार्यमें रत्नाधिक ( बड़े ) की आज्ञा विना प्रयत्न न किया जावे ।
मुनिराज श्रीवल्लमविजयनीने इस निमको पेश करते हुए विवेचन किया कि, महाशयो! यह नियम जो मैंने आपसाहिबोंके समक्ष पेश किया है जमानेके लिहानसे वह बड़े ही महत्वका और धर्मको फायदा पहुँचानेवाला है। जैनेतर लोगों में जैनेधर्मके तत्वोंका प्रचार करनेका यही सुगम उपाय है। लोगोंको धर्मके तत्व समझानेका जो अपना फरज है उसके सफल करनेका अत्युत्तम समय प्राप्त हुआ है। आप जानते हैं कि, अपनी सुस्तीके कारण कहो, या
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