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________________ आदर्शजीवन । आपने कहा :- " अच्छी बात है। चलिए मैं तैयार हूँ ।" सब उठे । अपने अपने घर गये । आप भाईके साथ पारख मोहन टोकरसीके घर गये । खीमचंदभाईने स्नान पूजन करके भोजन किया। दोनों भाई एक जगह बैठकर बातें करने लगे । खीमचंदभाई बोले :- " मैं समझ गया कि तू करेगा अपना धारा ही । मगर छः सात महीने और ठहर जा । चौमासे बाद खुशी से दीक्षा ले लेना । " 46 आपने कहाः – “ छः सात महीने ही क्यों मैं तो छः सात बरस ठहर सकता हूँ । मगर आप मुझे इस बातका निश्चय करा दीजिए कि मैं इन छः सात महीनोंमें मरूँगा नहीं । " खीमचंद क्या मुझे भविष्यका ज्ञान है सो मैं निश्चय करा सकूँ ?” 44 ● आप - " जब आप मुझे यह निश्चय नहीं करा सकते हैं तब मैं कैसे आपके कहनेसे अपना स्वार्थ- आत्मलाभ - बिगाड़ दूँ ? " ' स्वार्थ भ्रंशो हि मूर्खता । ' मैं तो अब देर न करूँगा । यदि कालने अचानक ही आ दबाया तो मेरे मनोरथ मनमें ही रह जायँगे । काल करंतो आज कर, आज करंतो अब्ब । पलमें परले होयगी, फेर करेगो कब्ब ॥ मैं अब देर करना नहीं चाहता । कालका कुछ भरोसा नहीं । आप कृपा करके आज्ञा दे दीजिए। इतना ही नहीं आप अगुवा बनकर मुझे दीक्षा दिला दीजिए। आपने अहम 8 Jain Education International ४९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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