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________________ मुझे बहुत अरसेसे मालूम हो रही थी इस लिये यह संमेलन देख कर मेरा चित्त आनंदसे फूला नहीं समाता । वह मेरी आशा आज पूर्ण हुई आप जैसे महात्माओंके दर्शनका जो लाभ हुआ है वह साधारण से आनंदकी बात नहीं है। आप लोग जो दूर दूर देशांतरोंसे महान संकटोंको सहन करके पधारे हैं इससे साफ प्रकट है कि आप भी इस संमेलनकी आवश्यकताको स्वीकारते हैं ऐसा मैं मानता हूँ। महाशयो ! अब मैं सभापति श्रीआचायेनी महाराजसे अपना भाषण करनेकी प्रार्थना करके बैठ जाता हूँ । इसके बाद ___ समापति आचार्य महाराज श्रीविजयकमलसूरिजीने, अपना व्याख्यान ( भाषण )-जो कि लिखा हुआ था-मुनि श्री वल्लभविजयनीको ही सुनानेके लिये कहा । आपकी आज्ञा पाते ही मुनिश्रीने उसे ज्यूँका त्यूँ पढ़ सुनाया। आचार्य श्रीमद्विजय कमलसूरीश्वरजीका व्याख्यान । मान्य मुनिवरो ! मुझे कहते हुए बड़ा ही आनंद हो रहा है कि, परम पूज्य न्यायांभोनिधि श्रीमद्विजयानंद सूरीश्वरजी प्रसिद्ध नाम श्रीमद् आत्मारामजी महाराजका शिष्य परिवार जितनी संख्यामें आज यहाँ एकत्र विराजमान है, उतनी संख्यामें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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