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________________ आदर्श-जीवन । - आप बुलाये गये । आप आचार्यश्रीके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गये । महाराजने पूछा:-" पत्रकी क्या बाता है ? " ___ आप नम्रता पूर्वक बोले:-" कृपानाथ ! अपराध क्षमा कीजिए । मुझे यह विश्वास हो गया था कि, जबतक खीमचंदभाईकी तरफ़से सफाई न हो जाय तबतक आपके चरणोंमें अर्ज करना फिजूल है। कारण,-आप खीमचंदभाईको फ़र्मा चुके हैं कि, जबतक तुम इजाजत न दोगे हम छगनको दीक्षा न देंगे। खीमचंदभाई आपके इस वचनपर निश्चिन्त होकर बैठे हैं। उन्होंने सोच लिया है कि, न मैं इजाजत दूंगा और न महाराज साहब दीक्षा देंगे। ऐसी हालतमें छगन व्याकुल होकर आप ही घर आजायगा।" . इसबातको सुनकर खीमचंदभाई सहित सभी हँस पड़े। आचार्य महाराज भी मुस्कुराये और बोले:-" तो खीमचंदअब तुझे इजाजत दे देंगे ? " आपत्रोले:-“ कृपालो ! स्थानप्रधानं न बलप्रधान । गरज बुरी बला है । गरज मुझे है खीमचंदभाईको नहीं । मैंने सोचा,-खीमचंदभाई अपने आप तो फैसला करेंगे नहीं, इसलिए मैंने ही फैसला करा लेना स्थिर किया । बड़ोदेमें ये अपनी इच्छानुसार कर सकते थे। इसलिये मैंने इन्हें यहाँ बुलानेकी तरकीब सोची । मुझे विश्वास था कि आपके सामने खीमचंदभाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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