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________________ आदर्श-जीवन । ४५ इतनेहीमें सीरचंदभाई, मोहनलाल पारख, गोड़ीदासभाई आदि कुछ राधनपुरके मुखियालोग आगये । उन्होंने भी खीमचंदभाईको धीरज दिया और कहाः-" हमारे घर चलो स्नान पूजा करके जीमो फिर शान्तिसे बातें करना । यहाँ तो कोई दीक्षाकी बात तक नहीं जानता । राधनपुर जैसे शहर में भी दीक्षा क्या चुपचाप ही होगी ? जब होगी तब बड़ी धूमके साथ । महोत्सव करनेवाले तो हम लोग ही हैं।" ... खीमचंदभाईने आपकी चिट्ठी सबको दिखाई और कहा:" देखिए यह छगनकी चिट्ठी है।" __आत्माराजी महाराजने फर्मायाः-“ खीमचंदभाई, तुम्हें हमारा विश्वास है या नहीं ? " __ खीमचंदभाई बोले:-" महाराज ! आपके वचनोंपर मुझे पूरा विश्वास है । आर उन साधुओंमेंसे नहीं हैं जो छोकरोंको बहकाकर भगा देते हैं और फिर चुपकेसे दीक्षा दे देते हैं। मगर मुझे यह विचार आता है कि, आपने सूचना न दी और छगनने दीक्षाकी सूचना क्यों दी ?" आचार्यश्रीने फर्मायाः-" भोले ! इस चिट्ठी में दीक्षाका जो दिन लिखा है वह मुहूर्त्तका हो ही नहीं सकता। मीनार्को कहीं दीक्षा हुआ करती है ? जान पड़ता है छगनहीने अपने मनसे यह चिट्ठी लिख दी है । अच्छा बुलाओ छगनको ! " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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