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________________ (१२) चुके थे कि हम दूसरे के स्थान पर या सभा में नहीं जासकते परन्तु भावड़ों के कहने से अपनी प्रतिज्ञा को छोड़ना पड़ा और भावडों के साथ तीन साधु कटड़े में आये; किन्तु सोहनलाल व मायाराम जो बड़े साधु थे, उन में से कोई भी न आया । तीनों साधुओं को सभा के चौधरियों ने कहा कि महाराज आप इन साधुओं के निकट आकर अपना जो कुछ वादविवाद है निर्णय करलेवें । परन्तु उन्होंने यह बात स्वीकार न की और सभा से जुदे एक किनारे पर बैठकर अपने सेवक भावड़ों को अपना जो कुछ मन्तव्य था कह सुनाया। सभा के लोगोंने साधु वल्लभविजयजी से प्रार्थना की कि यदि वे तीनों साधु इस जगह नहीं आते तो आप ही उनके पास चले और वार्तालाप करके हमें सत्यासत्य से विदित करें । यह बात सुनते ही वल्लभविनयजी उन तीनों साधुओं के पास जा खड़े हुए और कहा कि जो कुछ तुमने कहना है सो कहो, हम उसका जवाब देंगे। ढूंढिये साधुओं ने कहा कि हम तुम्हारे साथ चरचा करने को नहीं आये । तब लोगों ने कहा,-तो क्या यहां कोई तमाशा था जो देखने आये हो ? ढूंढियोंने कहा कि हम तो इन भावड़ों के कहने से पूज्य बक्षीराम को पाठ सुनाने आये हैं, तब लोगोंने साधु वल्लभविजयनी को कहा कि महाराज आप अपने आसन पर पधारे, ये तो बोलने से भी कांपते हैं, आपके साथ प्रश्नोत्तर क्या करेंगे । इस पर स्वामी वल्लभविजयनी अपने आसन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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