SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 590
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३) पर जा बिराजे और दूढियोंने जो कुछ मुंहमें आया सच झूठ बोला। ढूंढियों ने अपने सेवकों और पूज्य बखशीराम को महानिशीथ का पाठ सुनाना प्रारम्भ किया । पूज्य साहिब ने ढूंढिये साधुओं को ऐसा निरुत्तर किया कि वह बोलने से भी अशक्य हुए और जहां पूजा का पाठ आया ढूंढिये साधुओं ने वहां अंगूठा दे दिया । पूज्य बक्षीराम ने कहा कि अंगूठा उठाकर यह पाठ पढ़ो, सुनते ही ढूंढिये साधुओं के होश उड़गए । लोगों ने तालियां मारनी शरू करदीं, यदि उस समय पुलिस का प्रबन्ध न होता तो जाने ढूंढ़िये भावड़े कितने लोगों की दया पालते ? वाह खूब दयाधर्म निकाला है, ऐसे दयाधर्म की बलिहारी । लाचार अपना सा मुंह लेकर ढूंढ़िये कटड़े से बाहर निकल अपनी कोठी में जा घुसे, ढूंढ़ियों के पलायन करने के पीछे बड़ी धूमधाम और अंग्रेज़ीबाजे से बाज़ार में स्वामी आत्मारामजी की जय बुलाते और श्रीपार्श्वनाथजी के भजन गाते और खुशियां मनाते श्रीहीरविजयजी और श्रीवल्लभविजयनी आदि साधुओं को जहां वे उतरे हुए थे वहां पहुंचा दिया। उस समय अनुमान ५०० आदमी मकान तक साथ आए । इस खुशी में पुजेरे भावड़ों की तर्फ से सब को परशाद बांटा गया। इस सर्व वृत्तांत का सार यह है कि हमारी संमति में पुजेरों का जो कुछ कहना व मानना है, सर्वथा जैनशास्त्रानुसार है और मूर्तिपूजा के विषय में जो कुछ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy