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(११) रात को अपने पास पानी नहीं रखते, तो शुचि किस तरह करते हैं ? जैनशास्त्रों में सूतकपातक माना जाता है परन्तु ढूंढिये बिलकुल नहीं मानते । इत्यादि विषयों का वर्णन होने लगा तो ढूंढिये भावड़े झट चमक उठे और कोलाहल करने लगे कि इन विषयों को छोड़कर पहिले हम को महानिशीथ का पाठ दिखाओ, यद्यपि सब लोग इन्हीं विषयों को सुनना चाहते थे परन्तु ढूंढियों के कोलाहल और आग्रह से सब लोगों ने प्रार्थना की कि महाराजनी इनकी शांति के लिये पहिले आप पाठ ही दिखला दें। इस पर उसी समय महानिशीथ के तीसरे अध्ययन का पाठ जैनतत्वादर्श पृष्ठ ४०९ के साथ पूज्य बक्षीराम द्वारा उनको दिखलाया गया । महानिशीथ सूत्रानुसार गृहस्थी को मूर्तिपूजन सिद्ध किया गया, साधु बल्लभविजयजीने कहा कि यदि यह अर्थ जो पूजा के विषय में सूत्र महानिशीथ का बताया गया है असत्य है तो तुम्हारे ढूंढिये साधु सोहनलाल व मायाराम आदि जो यहां हैं उनको बुलाकर हमारे सामने निर्णय करालो, मूर्तिपूजन सत्य है वा असत्य है। यदि असत्य है तो महानिशीथ सूत्रानुसार असत्य करके दिखावें, नहीं तो मूर्तिपूजन का निर्णय हमारी तरफ से सिद्ध होगया। उसी समय ढूंढिये भावड़ों ने जाकर अपने साधुओं से कहा कि महाराज आज हमारे मत की बड़ी हानि हुई है आप चलकर उनको उत्तर दें, नहीं तो हमको उन से निरुत्तर होना पड़ता है । यद्यपि ढूंढिये साधु पहिले. कह
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