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________________ : आदर्श जीवन । (२८), लाहौर नगर, तत्र शांत दांत त्यागी वैरागी शासनोद्धारक आदि अनेक शुभ गुणालंकृत परम पुज्य आचार्य महाराजनी पवित्र सेवामां योग्य मुंबई बंदर थी ली० नीचे सही करनाराओ नी १००८ वार वंदना अवधारशोजी, वि० अमोजे गये परमरोज आप साहिबे परम पवित्र आचार्य पद ग्रहण करवाना समाचार सांभळी अमो सौ अत्यंत खुशी थया छीए. आपने आचाय पद अर्पण करवानो परम पुज्य शासन प्रभावक स्वर्गस्थ आचार्य श्री विजयानंद मूरि जी नो खास विचार हतो, परन्तु तेओ साहिबना स्वग गमन बाद आप दरेक रीते आचार्य पद माटे लायकात धरावता छतां आप ते पद ग्रहण न करतां श्रीमद् विजयकमल सूरीश्वरजी ने वडिल समजी तेमने ते पद ग्रहण कराव्यु हतुं, त्यार बाद पण अनेक अग्रगण्य व्यक्तिओ तरफ थी अनेक वार आपने आचार्य पद ग्रहण करवा माटे अत्यंत आग्रह हतो छतां आप ते माटे तद्दन निःस्पृह हता, तेमज हालमा पण अमारा सांभळवा अने जाणवा मुजब आप पद ग्रहण करवा निस्पृह हता, परन्तु अनेक मुनि वय तथा श्रावक समुदाय ना खास आग्रह अने अत्यंत प्रेरणाथी आपे आपनी इच्छा न होवा छतां ग्रहण कर्यु ते अत्यंत योग्यज कर्युछे, जेथी अमो सौ घणाज आनंदित थया छीए, आप तीर्थोद्धार ना तथा शासनोद्धार ना अनेक कार्यों करो, अने शासन देवता तेमां आपने सहाय थाओ, एम अमे सौ इच्छीए छोए । मागशर शुद ८ ने बुधवार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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