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________________ आदर्श-जीवन । था कि लड़का छोटी उम्रका तो नहीं है। मगर लड़केको देखनेसे और जाँचसे हमें यह निश्चय हो गया है कि, लड़का बड़ी उम्रका है.और अच्छा पढ़ा लिखा होशियार भी । आप लड़केको लेजाइए और महाराज साहबसे अर्ज कीजिए कि, कष्टके लिए क्षमा करें। चौमासा समाप्त हो गया । महाराज साहबका विहार पालीतानेसे होनेवाला था । जमना बहिनने आपको अपने साथ चलनेके लिए बहुत आग्रह किया मगर आप राजी न हुए। वे चली गई । स्वर्गीय महाराजका वहाँसे विहार हुआ। हमारे चरित्रनायकने भी उनके साथ ही अपने बिस्तरे और पढ़नेके ग्रंथ उठाकर प्रयाण किया । क्रमशः विहार करते हुए आचार्य महारान राधनपुर पधारे । आप भी साथ ही राधनपुर पहुँच गये। इसी तरह करीब तेरह चौदह महीने गुजर गये। आपने दो बार दीक्षा लेनेका प्रयत्न किया और दोनों ही बार असफल हुए । खीमचंदभाईकी आशा दोनों ही बार सफल हुई। अब तीसरी बार इम्तहानका समय आया शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ, माकुरु यत्नं विग्रह संधि । १. भावार्थ हे जीव ! यदि तू शीन ही मोक्ष चाहता है तो शत्रु और मित्र, पुत्र और बंधुके साथ झगड़ा या मेल करनेका यत्न न कर; सबके साथ समानताका वर्ताव कर । ( चर्पट पंजरी ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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