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________________ ४० मादर्श-जीवन । सूरिजी महाराजके पास आया और तारका अभिप्राय बतलाकर बोला:-" आपको दर्बारमें आना होगा; यदि आप नहीं आसकते हों तो अपनी ओरसे किसी विश्वस्त मनुष्यको भेन दीनिए।" उस समय वहाँ बड़ोदावाले सेठ गोकुलभाई, धूलियावाले सेठ सखारामभाई, भरूचवाले सेठ अनूपचंदभाई और खभातवाले सेठ पोपटभाई ऐसे चार श्रावक मौजूद थे। वे बोले:-" चलो हम आते हैं।" कलकत्तावाले राय साहब बद्रीदासनी मुकीम भी उस समय यात्रार्थ आये हुए थे और वे खास पालीताना दर्वारके महेमान थे; महलोंहीमें ठहरे हुए थे। सभी उनके पास गये और सारा हाल उन्हें कह सुनाया । राय साहब हमारे चरित्र नायकको साथ लेकर पालीताना दर्वारके पास पहुँचे । उन्होंने सत्य बात दर्बारको बताई और कहा कि-" किसीने दीक्षाकी झूठी अफवा उड़ादी है। जिस लड़केको दीक्षा देनेके विषयमें लिखा गया है वह आपके सामने खड़ा है।" दर्बार बोले:--" जब दीक्षा दी ही नहीं जाती है तब विशेष छानबीनकी हमें कोई जरूरत नहीं दिखती । हमारे पास एक आदमीने अर्जी भेनी उसकी जाँच करना हमारा कर्तव्य था। हमने जाँच की और हमें मालूम हो गया कि, बात गलत है। अगर दीक्षा देनेकी बात सच होती तो यह देखना हमारा फर्ज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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