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________________ आदर्श-जीवन । नेमें अच्छा अभ्यास था इसलिए फुर्तीके साथ हरेक कार्य कर. दिया करते थे । गुरु महाराजका अनुग्रह देखकर अन्यान्य साधु भी आपसे स्नेह करने लग गये थे। सच है 'यथा राजा तथा प्रजा।' . आनंदके साथ चौमासा समाप्त हुआ। लोग यात्रार्थ आने लग गये । इस वर्ष आपकी बहिन श्रीमती जमनाबहन भी यात्रार्थ आई थीं। ... नरसि केशवजीकी धर्मशालामें-जहाँ स्वर्गीय महाराजका चौमासा था-अठाई महोत्सवके लिए एक भव्य मंडप तैयार हो रहा था; क्योंकि उसमें धुलियावाले सेठ सखारामजी बारह व्रत ग्रहण करनेवाले थे । मंडपको जमनाबहनने देखा। उन्होंने किसीसे कुछ पूछताछ किये बिना ही यह निश्चित कर लिया कि, यह तैयारी मेरे भाई छगनलालको दीक्षा देनेके लिए हो रही है। उन्होंने तत्काल ही बड़ोदे खीमचंदभाईको तार दे दिया कि,शीघ्र ही पहुँचो । मिगसर बुदी (गुजराती कार्तिक बुदी) पंचमीके दीन छगनलालको दीक्षा दी जायगी। खीमचंदभाईने तत्काल ही एक तार स्वर्गीय आचार्यश्रीको दिया कि, छगनको दीक्षा न देना । और दूसरा तार पालीताना दर्बारको दिया कि,-अमुक साधुको रोको, वे मेरे भाई छगनको बगैर मेरी इनाजतके दीक्षा न दें। . पालीताना दर्बारने अपना कर्तव्य किया। एक राजपुरुष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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