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________________ आवर्श जीवन । माफिक करते हैं कि, पंजाब समग्र श्री जैन संघ ने एकत्र होकर लाहोर जैसे केपिटल स्थान में आप श्री को सूरि पद से विभूषित किया वह पत्र हमारे यहां पहुंचा, सोतो संघ की भक्ति गुरु प्रति होनी ही चाहिये, परन्तु आप श्री को स्वर्गवासी श्री मद्विजयानंद मूरिमहाराज ने पहिले ही से यह भार आपके लिये रोशन किया हुआ है, वैसे ही आपश्री कृतज्ञता सेवा धर्म, स्व सिद्धांत प्रतिपादन के भावों से निभ्रन्ति (१) होते हुए सानंद यहां एकत्र होकर पंजाब के पत्र को सुनते हैं। हम आपके अनुक्रम विधान कार्य निश्चितात्मा पर प्रसन्नता प्रगट करते हैं कि आप इस भारतवर्ष में स्वर्गवासी सूरीश्वर जी के बाद आनंद से समय समाप्त कर इस पदवी को सुशोभित कर रहे हैं। इस अवसर पर हमारे हृदयांकित विचार आप श्री की तरफ आकर्षित हैं। विविध प्रकार से आपके शासन काल में स्वयं परिज्ञान जो कुछ कार्य वाई करते हुए, न्याय तथा शासन सेवा के निमित्त हित दरसाया है उसकी प्रशंसा हम पूर्णतया नहीं कर सकते, प्रत्युत हम में से कई शखसों ने आप से धर्मोपदेश सुनने का आनंद और सौभाग्य अनुभव किया है, और इसी से हम आप की न्याय तत्परता शैली से पूरण परिचित हैं। जिस प्रेम और निष्पक्ष भावों से संसार के प्राणिमात्र पर आपकी करुणा दृष्टि हो रही है उसके लिए हम आपकी हार्दिक कृतज्ञता प्रकाशित करते हैं। जिन मनुष्यों को आपके पूर्ण परिचय का सुअवसर मिला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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