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________________ आर्दश जीवन | १००८ श्री श्री मद् आचार्य श्री श्री विजयवल्लभ सूरि जी आदि मुनि मंडल की सेवामें आसपुर (मेवाड ) से आपके चरण कमलोपासक तारावत: चंपालाल - निहालचंद आदि परिवार की द्वादशावर्त्त वंदना विनय स्वीकारियेगा | जैनपत्र आया उसमें मगसर सुदि ५ साडा सात बजे श्री जी को श्री संघने योग्य सो टच के सोनेमें हीरे माफिक पद समर्पण के समाचार पोस सु० ५ को बांचकर अत्यानंद हुआ, वारंवार श्री संघका धन्यवाद है, इस देशमें ४०० घर १००० मनुष्य हैं वो सर्व एक आवाज से धन्यवाद देते हैं श्री संघको और आप तो गुणवान ही हैं, सेवकों को समाचार १ माह के बाद मिले ऐसे कर्मवश पड़े हैं कि कर्मों की बलिहारी मिति पोष शुदि १०-१९८१ निहालचंद की वंदना सविनय द्वादशावर्त्त स्वीकारियेगाजी श्रीयुत उपाध्याय जी श्री १०८ श्री सोहन विजयजी महाराज जी से मेरी सविनय वंदना अभुट्टिओमि अभितर सहित स्वीकारियेगाजी । ( १५ ) Jain Education International ४९३ می श्री श्री १००८ श्री श्री विजयवल्लभ सूरीश्वर जी महाराज की चरण सेवामें सोजत ( मारवाड ) निवासी समग्र श्री शांति वर्धमानजी तथा श्री महावीर लायब्रेरी के जैन श्वेताम्बर समस्त संघ नम्रवंदना के साथ अपने हार्दिक प्रेम का प्रकाश इस - For Private & Personal Use Only सोजत ता. ७-१-२५ www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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