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________________ आदर्श जीवन । द. सेवक छोटा कीर्तिकी त्रिविध त्रिविध वंदना पूर्वक बडी खुशी हुई । अमारा आत्मा बहुत आनंद भया ए काम बहुज अच्छा हुआ है आपका पुण्य तेज है, प्रथम कान्फरन्स वखत पण करने की श्रावकों की मरजी हुई पण आपने ना पाडी तो अब दूसरे को ठपका का वखत नहीं रहा और सब लोक बडी खुशीसे ए काम करने को सामिल हुए और प्रतिष्ठाका मामला में बडी धाम धूमके साथ हुई अमारे को जरा मनमें दिलगिरी पैदा हुई पण अमदाबाद से और पं. ललितविजयजी की चिट्ठी से सुनके बड़ा आनंद हुआ है । ૩ ( १० ) वन्दे श्री वीरमानन्दम् । १००८ पूज्यपाद आचार्य भगवान् श्रीगुरु महाराजजी स'परिवारकी सेवा में लाहौर । घाटकोपर से सेवक वर्ग की १००८ वार वंदना स्वीकार होवे । कल रात्रिको प्रतिक्रमण बाद मणिलाल सूरजमलकी मारफत, तार द्वारा, आपकी आचार्य पदवी का समाचार सुन कर जो आनंद हुआ है, ज्ञानी महाराजही जानते हैं । इस खुशीमें क्या लिखूँ ? मारे खुशीके विवश हो रहा । बस इतना ही लिखता हूँ कि आजका दिन मेरे लिए तो क्या स्वर्गवासी, प्रातःस्मरणीय, जैनाचार्य, न्यायांभोनिधि, श्रीमद्वि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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