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________________ आदर्श जीवन । ४७३ समता गुण जितना अधिक हो उतना ही अच्छा है, इसी में शासन की शोभा है। यदि जिन शासन रसिक मुनि लोगों में समता गुण का अभाव हो तो लोगों की उनके प्रति अवश्य हलकी नजर होगी। लोग उन्हें तुच्छ दृष्टि से देखेंगे, ऐसी दशा में उक्त वृद्धि और साधुता शासन की शोभा के लिए नहीं किन्तु शासन को शरमाने के लिये ही हो सकती है। इस लिये मुनिजनों का समता गुण ही अधिकतया शासन की शोभा है। __ आप गुरु महाराजकी सेवा भक्ति में निरन्तर लगे रहे, पंजाब में महाराज जी साहिब रूप सूर्यास्त होने के बाद उन क्षेत्रों में आपके हाथ से अनेक प्रभावनाजनक शुभ कार्य हुए तथा निरन्तर भ्रमण करके बहुत कुछ उमति की। इससे आकर्षित होकर श्रीसंघने आपको गुरु महाराज के पट्ट पर अभिषिक्त किया यह खुशी की बात है । अब आगे को आपके द्वारा अधिकाअधिक धर्म कार्य हों और शासन की शोभा में उत्तरोत्तर वृद्धि हो तथा अन्य मुनिराज भी उसका अनुसरण करें तो उसकी शोभा भी आप को ही है। विशेष में मैं याद दिलाता हूँ कि, १००८ श्री स्वर्गवासी गुरु महाराज श्रीमद्विजयानन्द सूरीश्वरजी तथा गुरु जी महाराज श्री १००८ श्रीलक्ष्मीविजय जी महाराज जी की विद्यमानता में प्रायः ऐसा प्रसंग आने ही नहीं पाता था । कदापि दैव योग सकारण या निष्कारण किसी को छमस्थपने की लहरसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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