________________
आदर्श जीवन ।
4
दिया जावे तो तमाम जगत् विजय नाद से गूँज उठे । इस और न' को निकालने का उपाय छोटे बड़े दोनों को ही विचारणीय है । ऐसा होने से ही शासन की उन्नति होसकती है अन्यथा नाम मात्र की ही उन्नति है, कषाय धर्म और संयम दोनों के ही विघातक हैं इसी लिये इनके त्याग का शास्त्रों में बार २ उपदेश दिया है । जैन शासन में भले ही मुनियों और पदवीधरों की वृद्धि हो यह एक विशेष खुशी की बात है । परन्तु इसके साथ यदि वे अपनी २ शक्ति के अनुसार देश देशान्तर में भ्रमण करके सदुपदेश द्वारा लोगों में वास्तविक धर्म की अभिरुचि पैदा करें और उन्हें वीतराग देव के समाधि मार्ग के रसिक बनावें तथा एक दूसरे से प्रेम पूर्वक मिलें, प्रेम पूर्वक वार्तालाप करें एवं मिलते ही एक दूसरे के अन्तःकरण में आनन्द की उर्मियाँ उठने लगें और हिलमिल कर धर्म सम्बन्धी कार्यों का विचार करें तभी शासन की शोभा तथा उन्नति में यह वृद्धि उत्तरोत्तर वृद्धि कर सकती है ।
४७२
गृहस्थ लोग आपस में मिलते समय अपने पुराने से पुराने वैर विरोध को छोड़ कर बड़े प्रेम भाव से मिलते और वार्तालाप करते हैं | अपने साधु कहलाते हैं और उस पर भी वीतरागदेव के शासन के अनुयायी हैं। अपने में समता गुण की अधिकता देख कर ही अन्य गृहस्थ लोग धर्म में प्रवृत्त हो सकते हैं, इस लिए वीतरागदेव के अनुयायी साधु वर्ग में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org