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आदर्श जीवन।
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बड़ों के सहारे अपने संयम का पालन करते हैं और बड़े अपने दीर्घ कालीन विशिष्ट अनुभव द्वारा समय २ पर उनको समुचित्त शिक्षण देते हुए उन से संयम पलाते हैं । इस प्रकार परस्पर के प्रेम भाव से ही शासन शोभा और धर्माभिवृद्धि में प्रगति होती है । महत्व की शोभा केवल लघुत्व पर ही अवलम्बित है।
नमन्ति सफला वृक्षा नमन्ति सज्जना जनाः । - आप जानते हैं कि यह समय कुसंप के बढ़ाने का नहीं किन्तु जहाँ तक होसके उसको कम करने का है। परम पूज्य महाराज जब विद्यमान थे तब वे साधुओं और श्रावकों के साथ कितना प्रेम रखते थे, तथा साधुओं और श्रावकों में परस्पर कितना प्रगाढ़ प्रेम था उसका स्मरण आते ही आजकल की दशा पर अश्रुपात हुए बिना नहीं रहता । वे महा पुरुष एक ही थे परन्तु उनके समय में जो २ काम हुए हैं उनका तो आज स्मरणमात्र ही रह गया । इसमें सन्देह नहीं कि अधिक महात्मा यदि आपस में मिलकर काम करें तो काम अवश्य अधिक हो मगर ऐसा भाग्य कहाँ ? यदि मुनिनायक और साधारण मुनिराज अपने दिल में कुछ नम्रता को स्थान दें तो शासनोन्नति के अनेक प्रशंसनीय कार्य होसकते हैं परन्तु ऐसा सद्भाग्य मिलना बहुत कठिन है। ___ आपस में कुसम्प बढ़ने बढ़ाने का मुख्य कारण अभिमान है। इस अभिमान शब्द में से यदि ‘मा और न' निकाल
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