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________________ आदर्श जीवन । परवाह नहीं करते । वे कष्टों के पहाड़ों को चीरते हुए अपने ध्येय स्थान पर पहुँचकर ही बस करते हैं । कष्ट सहन किये बिना कुछ नहीं बनता, पुराने उदाहरणों को छोड़िये एक ताजा ही उदाहरण लीजिये__ श्री १००८ गुरु महाराज साहिब ने जितने कष्ट सहे हैं उनकी गणना करनी कठिन है । यदि वे इस कदर कष्टों को न सहते और दृढता पूर्वक उनका मुकाबिला न करते तो आज जो कुछ धर्म प्रभावना दृष्टि गोचर हो रही है यह कभी देखनी नसीब न होती । महाराज श्री अपने पूर्व कष्टों का कभी ज़िकर करते तो सुनकर आँखों में आँसू भर आते । इस लिये मात्र मानी हुई बड़ाई काम नहीं आती, किन्तु आचार में आया हुआ बड़प्पन ही काम की चीज़ है । विचार कर देखा जाय तो जितने भी महन्त आज तक हुए हैं वे सुख की शय्या पर सोते हुए नहीं किन्तु अनेक विध कष्टों की कंटीली शय्या पर तपस्या करने से हुए हैं । महत्व प्राप्त करना कुछ मामूली सी बात नहीं। __इसके अलावा नायक बने, इस से यह कदापि समझने का नहीं कि हमारे आश्रय तले रहा हुआ अन्य साधुवर्गमात्र हमारी हाँजी के लिये ही है, किन्तु छोटे साधु जो हैं वे बड़ों के संयम पालने में और शासन की शोभा वृद्धि में कई प्रकार से मददगार हैं ऐसा विचार करने का है। मयूर अपने छोटे बड़े अनेक प्रकार के पिच्छसमूह से ही शोभा देता है। छोटे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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