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________________ ४६२ आदर्श जीवन। आज चार रोज से श्री यशोविजय जैन गुरुकुल की तरफ से दो आदमी चन्दे के लिये आये हुए हैं। यदि यह लोग आने से पहले खबर देते तो मैं इनको तुरन्त ही जवाब लिखा देता । इन लोगों का चन्देके निमित्त यहाँ पर आना समुद्र का छपडियों से जल मांगने आने समान है। परन्तु यह लोग यहाँ पर आकर खाली चले जावें इस में भी शोभा नहीं । इस लिये ये लोग जिस ग्राम में आवें वहाँ इनकी यथाशक्ति मदद करनी योग्य है। ___ इसके सिवाय एक और बात की तरफ आपका ध्यान खींचता हूँ कि सिद्धक्षेत्र पालीताणा में पहाड़ पर भगवान ऋषभदेव के चरणों के नजदीक ही अपने परम उपकारी स्वर्गवासी गुरुमहाराज की एक मूर्ति विराजमान है । उस जगह पर जो कुछ भी काम हुआ है वह कितना रमणीय और शोभास्पद है वह तो आप में से जिन लोगों ने वहाँ जाकर दर्शन किये हैं उनको मालूम ही है । उसकी सुन्दरता के बनाने में जो कुछ भी द्रव्य लगा है उस में पंजाब निवासियों के सिवाय और किसी का एक पैसा नहीं, यदि चाहते तो गुजरात, काठियावाड़ और मारवाड़ आदि देश का कोई एक ही सदगृहस्थ इतना काम बनवा सकता था; परन्तु पंजाब पर जो उनका खास उपकार हुआ है उसकी स्मृति कायम रखने के लिये ही ऐसा नहीं किया गया । मगर अपने घर का काम काज छोड़कर, अपने वक्त का भोग देकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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