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________________ ३६ आदर्श-जीवन । - . हीराभाईने खीमचंदभाईको बुलाया और कहाः-" छगन पालीताने जाना चाहता है। साथ भी अच्छा है । यात्रार्थ भेजनेमें क्या कोई हर्ज है ?" .. खीमचंदभाईने उत्तर दिया:--" यात्रा जाते मैं नहीं रोकता । इसकी इच्छा हो वहाँ जाय; यदि पालीतानेहीमें चौमासा करना चाहे तो भी करे । मगर इसको प्रतिज्ञा करके जाना होगा कि, यह वापिस बड़ोदे जरूर आयगा ।" आपने सोचा सस्तेहीमें छूटते हैं । झटसे बोल उठे,-" मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि बड़ोदे जरूर जाऊँगा।" खीमचंदभाईने इजाजत दे दी । उन्होंने खर्चेके लिए सेठ. गोकुलभाईको रुपये दिये और उनको कहाः- जैसे आप इसे अपने साथ ले जाते हैं वैसे ही वापस ले आना । मैं इसे आपको सौंपता हूँ।" गोकुलमाई बोले:--" साथ में ले जाना और सार सम्भाल रखना हमें मंजूर है मगर वापस ले आनेका निम्मा हम नहीं ले सकते । यदि यह रानीखुशी हमारे साथ आयगा तो हम ले आवेंगे नहीं आयगा तो हम उत्तरदाता नहीं । इच्छा हो भेजो न हो न भेजो।" आप बोले:--" जब मैं वापस आना स्वीकार कर चुका हूँ तब इनके साथ कौल करार करनेकी क्या जरूरत है ?" खीमचंदभाईने वैसे ही जानेकी इजाजत दे दी । पालीताना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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