SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन ३७ पहुँचे । अपनी आयु में पहली ही बार आपने दादा के दर्शन किये । आपको उस समय जो आनंद हुआ वह वर्णनातीत है । सं० १९४३ का चौमासा आपने पालीतानेही में स्वर्गीय श्री आत्मारामजी महाराजके पास बिताया । यथाशक्ति विद्याभ्यास भी करते रहे। पंजाबी पंडित खीमचंदजी ओसवालके - पास चंद्रिका पढ़नी शुरू की । पंडित अमीचंदजी पट्टी जिला लाहोरके निवासी थे । जिस समय आत्मारामजी महाराजकी श्रद्धा स्थानकवासियोंके पंथसे हट गई, उस समय अमीचंदनीके पिता घसीटामलको स्वर्गीय महाराजने कहा कि, - तुम्हारे तीन पुत्र हैं । उनमें अमीचंद्रकी बुद्धि तेज है । तुम इसे संस्कृतादि विद्या पढ़ाओ । फिर जो कुछ सत्य बात होगी सो तुम्हें मालूम हो जायगी । तुम्हारा बेटा तो तुम्हें असत्य बात नहीं कहेगा न ? लाला घसीटामलके दिलमें यह बात जच गई । उन्होंने अमीचंद्रको संस्कृत पढ़ाना प्रारंभ कर दिया। जब व्याकरण न्याय, धर्मशास्त्र आदिमें अमीचंद्र प्रवीण हो गये तब उनके पिताने उनसे पूछा: " बेटा बता, सूत्रोंका अर्थ पूज्य अमरसिंहनी करते हैं वह सत्य है या आत्मारामजी महाराज करते हैं वह सत्य है ? " - - अमीचंद्रजीने उत्तर दिया:-" पिताजी ! श्री आत्मारामजी महाराज फर्माते हैं वही सत्य है। ये ही जैनधर्मका - सत्य मार्गका उपदेश देते हैं । " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy