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आदर्श-जीवन ।
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तरफसे और पालीताना दर्बारकी तरफ़से आत्मारामजी महाराजका, बड़ी धूमके साथ स्वागत किया गया और नगरप्रवेश कराया गया ।
आपके दिलमें पालीताने जानेकी चटपटी रगी। आपने सुना कि, बड़ोदेसे परम श्रद्धालु, धर्मात्मा सुश्रावक सेठ गोकुलभाई दुलभदास और परम श्राविका विजली बहिन आदि कई श्रावक श्राविकाएँ पालीताने जानेवाले हैं। उनमेंसे कई तो पालीतानेहीमें चौमासा बितायँगे और कई यात्रा करके लौट आयेंगे । आप सैठ गोकुलभाई और विजली बहिनके पास पहुँचे और बोले:-“ मुझे भी अपने साथ ले चाहिए।"
उन्होंने उत्तर दियाः-" आनंदसे हमारे साथ चलो; हमारे साथ ही रहना और अध्ययन करते रहना।हाँ तुम्हें अपने भाईकी आज्ञा जरूर ले लेनी होगी । उनकी इजाजतके बिना हम तुम्हें नहीं ले जा सकेंगे; क्योंकि उनका मिजाज तेज है । वे हमसे कुछ कह बैठे तो अच्छा न हो।" . आप बोले:--" मैं इसका प्रबंध कर लूँगा । मुझे तो केवल गुरु महाराजके चरणोंमें पहुँचू तबतकके लिए साथकी जरूरत है। मैं कभी गया नहीं हूँ इसी लिए मार्गसे अपरिचित आपके साथ जाना चाहता हूँ।"
आप हीराभाईके पास गये और नम्रताके साथ बोलेः" मुझे पालीताने जानेकी इजाजत दिला दीजिए।"
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