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________________ आदर्श - जीवन । । गाँवोंमें सामैये प्रायः रातही को हुआ करते हैं। भोजन करनेमें विवेक जैसा अभी देखाजाता है वैसा उस समय नहीं था । आप खाना हुए। आपके साथ ही खीमचंदभाई आदि दूसरे भी कई चले । ३४ - समनी के भाइयोंने बड़े आदर के साथ सभीको भोजन कराया । आपकी तो उन्होंने इसलिए बहुत ज्यादा खातिरी की कि, आप छोटी उम्र में ही धर्माचरणमें इतने दृढ हैं । स्त्री पुरुषोंने मुक्त कंठसे प्रशंसा करते हुए कहा कि, यह कोई होनहार जीव है । खीमचंदभाई आदि कहने लगे, " धर्मकी बलिहारी है । एक धर्मात्मके कारण हम इतने आदमियोंकी कितनी खातिर तवाजे हुई और वह भी आशातीत । अगर बरात के साथ जीमते तो न जाने कब पेटमें पड़ता और वह भी ठंडा । अभी कैसा गरमा गरम मिल गया है ! इसकी रीस हो सकती है ? हम तो जबतक यहाँ रहेंगे छगनके साथ ही जीमते रहेंगे । 99 खीमचंदभाई के हृदय में धर्म की श्रद्धा तो थी ही । इस विशेषताने आपके मार्गकी घटनाने उसमें विशेषता ला दी । इस भी बहुतसी असुविधाएँ निकाल दीं । बरात से वापिस बड़ोदे आगये । थोड़े दिन बाद समाचार मिले कि, महाराज साहब श्री आत्मारामजी पालीताने पहुँच गये हैं । वहाँ अहमदाबादके नगर सेठ प्रेमाभाई हेमाभाई, तथा सेठ दलपतभाई भग्गुभाईके पत्रके कारण सेठ आनंदजीकी पेढीकी 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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