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आदर्श जीवन ।
प्रथम-जो चादर इस वक्त श्रीसंघ की तरफ से महाराज श्री पर
ओढाई जाने वाली है वह कपड़े के लिहाज़ से तो अत्यन्त विशुद्ध एवं पवित्रतम है ही; परन्तु इस चादर में एक और विशेषता है, इसका मूत मेरे पूज्य पितृकल्प पंडित हीरालाल जी शर्मा ने अपने हाथ से काता है और इस पर सैकड़ोंही नहीं बल्कि हज़ारों ही "उपसग्गहर" तथा 'नव स्मरण' के पाठ हुए हैं (हर्षध्वनि) द्वितीय-जिस समय महाराज श्री की दीक्षा राधनपुर में हुई थी उस समय हमारे, जैन समाज के नेता दानवीर सेठ मोतीलाल मूलजी वहाँ पर मौजूद थे, उस वक्त दीक्षा का सब प्रबन्ध आप के हाथ से हुआ था और आज जब कि आप श्री को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया जाता है तब भी सेठ साहिब यहाँ पर आप लोगों के समक्ष विद्यमान हैं। इससे इनकी पुण्य श्री के अतिरेक का अन्दाजा आप लोग बखूबी लगा सकते हैं। "*
महाराजश्रीके कीमती वचन-पंडित जी के बोल चुकने के बाद महाराज श्री उठे और आप ने फरमायाः
* बडे दुःखसे कहना पडता है कि धर्मपरायण दानवीर सेठ मोतीलाल मूलजी इस वक्त संसार में नहीं हैं । लाहौरसे आते ही कुछ दिन बाद बम्बई में उनका देहान्त हो गया । ऐसे उदारचेता धर्मात्मा पुरुष का जैन समाजमें से सदा के लिये विछुड जाना बडे ही दुःख की बात है। पंजाब में आपका यह प्रथम आगमन सदा और सबके लिये अंतिम हो गया । समस्त भारतवर्षके जैन समाजको आपके विनयोगका दुःख है।
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