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आदर्श जीवन ।
" उपस्थित चतुर्विध संघ मुझे जिस गुरुतर पद पर प्रतिष्ठित कर रहा है उसकी जिम्मेदारी को मैं जानता हूँ। उस पद के अनुरूप मेरे में योग्यता कितनी है इसका भी मुझे पूरा ख्याल है। मैं यह भी अच्छी तरह से जानता हूँ कि मेरे से वयोवृद्ध, दीक्षावृद्ध और ज्ञानवृद्ध, मेरे देश के मेरे शहर के मेरे परम उपकारी-जिनका उपकार मेरी नस २ में समाया हुआ है-प्रवर्तक श्रीकान्तिविजय जी महाराज, शान्तमूर्ति श्रीहंसविजय जी महाराज, तथा अनन्य गुरु भक्त पंन्यास श्री सम्पद्विजय जी महाराज और मेरे पास में विराजमान परम वृद्ध स्वामी श्रीसुमतिविजयजी महाराज मेरे सिरताज मुनिराज मेरे सिर पर अभी विद्यमान हैं; तथापि श्रीसंघ का विशेष आग्रह और उक्त महापुरुषों का अनुरोध एवं विशिष्ट कृपा तथा विशेष कर स्वर्गवासी गुरु महाराज के वचन का पालन इस गुरुतर भार को उठाने के लिये मुझे विवश कर रहा है। जिस के लिये मैं लाचार हूँ। स्वर्गवासी गुरु महाराज पंजाब के थे। उन्हों ने इस वीर भूमि पंजाब में वीर परमात्मा के निर्दिष्ट किये हुए धर्मवीज को आरोपित, अंकुरित और पल्लवित करने में जो२ असह्य कष्ट सहे हैं वे सब मेरे हृदयपट पर पूरे तौर से अंकित हैं ।
मैंने इसी उद्देश्य से अपने शिष्य वर्ग में से, सोहनविजय, ललितविजय, उमंगविजय और विद्याविजय इन चार को पंन्यास बनाया; क्योंकि वे चारों ही पंजाबी हैं और गुरुभक्ति में ये चारों ही एक से एक बढ़ कर हैं। इन चारों ही गुरुभक्तों को मैं अपनी चार भुजाएँ समझता हूँ। इन चारों को आज से इस बात को अपने
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