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________________ ४५४ आदर्श जीवन। धर्मप्रिय सेठ सुमेरमल जी सुराणा बीकानेर और सेठ पूंजलाल सातभाई वगैरह ( अहमदाबाद ) आदि सद्गृहस्थों के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। हम को यह कहते हुए और भी आनन्द होता है कि हमारे इस शुभ इरादे-आचार्यपद देने को मुनि श्रीसुमतिविजयजी, साधु शिरोमणि प्रवर्तक श्री कांतिविजय जी और शान्तमूर्ति मुनि प्रवर श्री हंस विजयजी महाराज ने भी अपनी समुचित अनुमति द्वारा अपनाकर परिपुष्ट किया है । अतः हमारी आपके चरणों में बड़े विनीत भावसे प्रार्थना है कि आप इस आचार्य पदको सुशोभित करें। ____ आपके हाथों से देशकालोचित प्रभावना जनक अनेक कार्य हों और शासन की विजयपताका उत्तरोत्तर अधिक फहरावे. यही हमारी शासनदेव से बार २ प्रार्थना है। विनीतपंचनदीय, जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक वीर सं० २४५१. आत्म० सं० २९. विक्रम सं० १९८१ मार्गशीर्ष शु० ५ चन्द्रवार. समस्त श्रीसंघ, स्थान-लाहौर. ) इस मान पत्रको पढ़ चुने के बाद उपस्थित चतुर्विध संघ को सम्बोधित करते हुए पंडित जी ने कहा कि,-" इस समय संक्षेप से दो बातें आप से मुझे जरूर निवेदन करनी हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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