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________________ आदर्श जीवन। ४४१ ठीक बारह बजे के करीब बड़ी धूमधाम से भगवान् की सवारी निकाली गई और शहर के नियत स्थानों से होती हुई करीबन आठ बजे वापिस लौटी । सवारी के साथ जनता की भीड़ बेशुमार थी, जिधर देखो उधर ही स्त्रीपुरुषों का समूह नज़र आता था। सवारी का क्रम-सब के आगे नपीरियों का मनोहर बाजा था। उसके पीछे पुतलियों वाली महेन्द्र ध्वजा फरकाती हुई चल रही थी। उसके बाद एक गतका बाज़ी का कर्तव्य दिखाती हुई मंडली जारही थी । उसके पीछे मोटरों पर सजी हुई सोना चाँदी की पालकियों और रथों के साथ चलती हुई एक २ भजन मंडली अपने मनोहर भजनों द्वारा दर्शक जनता को मुग्ध कर रही थी और उनके साथ २ चलनेवाले वेंड भी अपनी नवीन वादन कला का खूब ही परिचय देरहे थे। सवारी की लम्बाई तकरीबन आधे माइल के थी। सवारी के दरम्यान में एक सुन्दर मोटर पर बड़ी सजधज के साथ विराजमान की हुई स्वर्गवासी गुरुमहाराज (श्री आत्मारामजी) की ऑइल पेंटिंग छबी थी वह दर्शकों के दिलों पर अपूर्व प्रभाव डाल रही थी। सबके पीछे भगवान् का जो गङ्गा जमनी ( सोने चाँदी का मिश्रित ) स्थ था उसके आगे ओसिया की सुप्रसिद्ध भजन मंडली अपना अद्भुत नाटकीय कर्तव्य दिखा रही थी तथा इस रथ के आगे लाहौर का सुप्रसिद्ध जो वेंड बज रहा था उसका मधुर नाद तो अभी तक कानों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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