SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 488
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन । लाहौरका चतुर्मास । प्रभु प्रतिमाओंके लानेका कार्य परिपूर्ण हो जानेके अनतर अब यहाँके श्रीसंघके मनमें उनको प्रतिष्ठित करनेकी विशुद्ध भावना जागृत हुई; परन्तु इसकी पूर्तिका होना अधिTia महाराजश्री के हाथमें था । तदर्थ सबसे प्रथम श्रीसंघने आपश्रीकी सेवा में अपनी भावनाको पहुँचाया । उस समय महाराजजी साहिब जंडियालागुरुमें विराजमान थे । अमृतसर में लाहौर के श्रीसंघने महाराजश्रीको बड़े ही विनीत भावसे लाहौर पधारनेकी प्रार्थना की और अपना प्रतिष्ठा सम्बन्धी इरादा आपसे स्पष्टतया अर्ज किया; परंतु आपने अपना भाव लाहौर होते हुए सीधे गुजराँवाला पहुँचने का बतलाया । तदनुसार आप लाहोर में पधारे और ज्येष्ठ शुदी अष्टमीका स्वर्गवासी गुरु महाराजका जयन्ती महोत्सव आपने लाहोर में ही किया । लाहोर में कुछ दिन विराजने और चतुर्मासके अति निकट होने पर भी पंजाबकी जैन जनताको तो यही दृढ विश्वास था कि महाराजश्रीका यह चतुर्मास निस्संदेह गुजराँवालेमें ही होगा और स्वयं महाराजजी साहिबका विचार भी पूर्णतया स्वर्गवासी गुरुमहाराजके चरणोंमें ही चतुर्मास करने का था [ इसी लिये स्वामीजी आदि कुछ साधुओंने विहार भी कर दिया था जिसके लिये स्वामीजीका चतुर्मास वहीं पर हुआ । ] परन्तु इस बलवती क्षेत्रस्पर्शना और लाहोर Jain Education International ४३७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy