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________________ आदर्श-जीवन। गाँधी और साँकलचंद खंभाती भी तो इसीके साथी थे। वे तो इससे उम्रमें भी बड़े थे। जब वे ही अपनी वैराग्य भावनाओं पर स्थिर न रह सके तब यह कैसे रह सकता है ? दो दिन धक्के खाकर आप ही ठिकाने आनायगा। फिर बोले:-“ छगन ! जैसी तेरी इच्छा ! मगर एक बात कह देता हूँ-जो कुछ करे बहुत सोच समझ कर; मनको दृढ़ बनाकर करना ।" __ खीमचंदभाई चले गये । बिस्तरों पर लेटते ही निद्रादेवीने उन्हें अपनी गोदमें आराम दिया। ___सवेरा हुआ । बरातने चलनेकी तैयारी की । आप जानते ही थे। इसलिए सवेरे ही उठे और अपने आवश्यक कार्यसे निश्चिन्त हो गये । प्रतिक्रमण हो चुका था। सामायिक पारनेकी देरी थी। खीमचंदभाई सबको रवाना कर आपके लिए ठहर गये। थोड़ी देरके बाद आप भी तैयार हो गये और अपना संथारिया बाँधकर बोले,-" चलिए ।" खीमचंदभाईने कहा:-" ला, तेरा संथारिया मुझे दे । मैं ले चलूँगा।" __ आप बोले-" यह नहीं हो सकता। आप बड़े हैं । आपको अपने बिस्तर उठवानेके बराबर मेरी और कौनसी असभ्यता हो सकती है ? " " बस बस रहने दे अपनी सभ्यता !" कहते हुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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