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________________ आदर्श जीवन | सुनाना ! अब आपके आत्माको यह निश्चय हो गया कि तेले तककी तपस्या तो मैं सहर्ष कर सकता हूँ और इसी उत्साहसे गत वर्ष लाहौर और इस वर्ष गुजराँवालामें तेलेकी तपस्या आपने की थी; परन्तु " जहा लाहो तहा लोहो " वाला हिसाब ! अब आप चौला चार उपवास लगातार करनेकी अभिलाषा कर रहे हैं ! शासन देवता आपकी अभिलाषा पूर्ण करें ! वाचक वृन्दके दर्शनार्थ होशियारपुरकी तपस्या समयकी तस्वीर साथमें दी गई है । आपकी कृश शरीरावस्थाको देखकर पं० ललितविजयजी महाराज बहुत कुछ कहा करते थे; परन्तु प्रतिज्ञाके नामसे वे भी लाचार हो जाते थे । एक दिन बंबईसे किसी भाग्यवान धर्मात्माका पत्र होशियारपुर पहुँचा, जिसमें यह इशारा था कि, श्रीमहावीर जैन विद्यालयकी दश वार्षिकी मर्यादा पूर्ण होनेपर आई है अब आपको इसकी तरफ भी नजर करनी चाहिए । पत्रको पढ़कर आप विचारमें पड़े आपको विचार में पड़े देख, हाथ जोड़, चरणोंमें नमस्कार कर नम्रभावसे पं. ललितविजयी महाराजने विज्ञप्ति की :" सगुरो ! ऐसी क्या बात है ? " ४१७ आपने वह पत्र पंन्यासजी महाराजको दे दिया और कहा:- “ इसे पढ़ लो और यदि कुछ हिम्मत है तो यथाशक्ति हाथ बटाओ । " २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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