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________________ ४१६ आदर्श जीवन। आपने दश द्रव्योंमेंसे भी एक और कम कर दिया। चतुर्दशी पूर्णिमा और चतुर्दशी अमावास्याका छठ-बला करना शुरू कर दिया । बारह तिथि मौनव्रत स्वीकार कर लिया। पं० ललितविजयजी महाराजकी व्याख्यानादिमें सहायता मिलनेसे आप अपनी निर्धारित तपस्यादि कायसिद्धिमें सिद्ध हस्तसे हो गये। सत्य है योग्य उत्तर साधक मिलनेसे ही कार्यकी सिद्धि होती है । इस चतुर्मासमें कई सूत्रोंका स्वाध्याय भी आपने किया। आपके मनमें कई वर्षोंसे यह अभिलाषा हो रही थी कि कभी मैं इस जिन्दगीमें अट्ठम-तेला कर सकूँगा? सो वो अभिलाषा भी पूर्ण हो गई। बड़े आनंदसे तेला हो जानकी खुशीमें लाला गुज्जरमलजी नाहर गोत्रीयके पौत्र लाला दौलतरामजीने सहर्ष १०१) रुपये जीवदयामें दिये। उनका अनुकरण करके श्रीसंघ होशियारपुरने और भी कुछ रकम जीवदयाके निमित्त इकट्ठीकी और कुल रकम बंबई जीवदयामंडलके नियंता सेठ लल्लुभाई गुलाबचंद झवेरी बल साडनिवासीको भेज दी। __इस वर्ष पर्युषामें व्याख्यानका कार्य पं. ललितविजयजी महाराजके सुपुर्द होनेसे आपने निश्चिन्ततासे व्रत-बेला और तेला करके पर्युषण पर्वका आराधन कर अपने जन्मको सफल माना । समयकी बलिहारी ! कहाँ तो तेला करते हुए झिझकना-होगा या नहीं इस प्रकार सशंक होना और कहाँ लेके साथ सांवत्सरिक पर्वके रोज कल्पसूत्र-बारांसोका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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