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________________ आदर्श जीवन । आपके उपदेश से वहाँ श्रीआत्मानन्द जैन लायब्रेरी खोली थी जो अच्छी हालत में चल रही है । चारित्रपूजा आपने यहीं समाप्त की । यहाँ आपने यथाशक्ति तपका आराधन भी किया। यूँ तो आप हमेशा अष्टमी चतुर्दशीको व्रत करते हैं, अन्य तिथियोंको एकासना करते हैं । परन्तु बीकानेरसे विहार करते हुए यह अभिग्रह धार लिया था कि, जबतक पंजाबके किसी खास बड़े शहरमें पहुँच न जाँय तबतक रोज एकासना करना और आठ द्रव्यसे अधिक द्रव्य खाने पीनेके उपयोगमें नहीं लेना । बादमें हमेशाके लिए यावज्जीवन दश द्रव्यसे अधिक द्रव्य नहीं लेना | जिस रोज भूल हो जावे और अधिक द्रव्य उपयोगमें आ जावें उसके अगले रोज जितने द्रव्य अधिक उपयोगमें लिए होवें उनसे दुगुने कमती कर देना । आपका प्रथम प्रवेश होशियारपुरमें हुआ । एकासनाकी प्रतिज्ञा पूर्ण हो गई । साधुओंके कहने कहानेसे कुछ रोज दो वक्त आहार करते रहे; परंतु आपका दिल मानता नहीं था फिर आपने एकासना शुरू कर दिया । उपवासके पहले और अगले दिनके सिवाय हमेशा एकासना शुरू कर दिया । साथमें अमुक, धारा, धार्मिक काम पूरा न हो लेवे तबतक गुड़ शक्कर आदि मीठा या मीठेका बना कोई भी पदाथ नहीं खाना । इस प्रकारकी प्रतिज्ञा धारण कर ली । पूर्वोक्त अभिग्रह-प्रतिज्ञाके होते हुए भी इस चतुर्मासमें Jain Education International For Private & Personal Use Only ४१५ www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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