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________________ आदर्श जीवन । आत्मानंद जैन प्रकाशमें प्रकाशित हुआ था कि । " x++ वल्लभविजयजी महाराजकी अध्यक्षतायें ( लुधियानेमें प्रातः स्मरणीय विजयानंद सूरीश्वरजीकी) जयन्ती मनाई गई थी। सवेरे इसके लिए दो हजार भाई बहिन जमा हुए थे । +++ श्रावकों ने जयन्तीकी याददाश्त सदा रखनेके लिए यह प्रतिज्ञा की थी कि, वे कभी चरबीवाले अपवित्र वस्त्र और रेशमी वस्त्र लग्नादि किसी भी प्रसंगपर उपयोगमें न लायँगे । इससे हजारोंका खर्च बचनेकी संभावना है । इस तरह गुरु भक्ति कर जयन्ती मनाई गई थी । " - ४१० लुधियानेसे विहार हुआ तब आपको पहुँचानेके लिए आपके साथ सैकड़ों लोग - श्रावकों के अलावा हिन्दु मुसलमान सिक्ख आदि भी - करीब एक माइलतक गये थे । विहार करते हुए आप सं० १९७८ के अषाड़ कृष्ण ६ के दिन अंबाले पहुँचे । बड़े समारोहके साथ आपका नगरप्रवेश हुआ । जब जुलूस उपाश्रय में पहुँचा तब लाला गंगारामजीने १००) रु. और १३) रु. अन्य दो महाशयोंने दानमें दिये और वे रुपये आपके उपदेशसे क्रमशः कांग्रेस और खिलाफत कमेटियोंको इस शरतपर दिये गये कि, नंगे भूखोंको कपड़ा और भोजन दिया जाय । वहाँ जब आपने व्याख्यान दिया तब करीब एक हजार स्त्री पुरुष थे । आपके व्याख्यानका जनता पर बड़ा असर हुआ उसका सार यह था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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