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________________ आदर्श जीवन जो चाहो शुभ भावसे, निज आतमकल्यान । तीन सुधारो प्रेमसे, खान, पान पहरान ॥ आपके इस उपदेशसे अंबालेके श्रीसंघने एकत्र होकर जो प्रस्ताव किया था वह हम " आत्मानंद जैन सभा " अंबालेकी सालाना रीपोर्टसे यहाँ उद्धत करते हैं, “(१) कोई भाई विवाह, गमी या अन्य अवसरों पर चढ़ावा और सौगातमें ऐसा कपड़ा न देवे जिसमें चरबीकी पान दी हुई हो और इस लिए धर्म विरुद्ध और अपवित्र हो, तथा रेशमी कपड़ा, जो लाखों कीड़ोंकी हिंसासे बनता है । (२) चरबीसे बना हुआ साबन भी आगेको कोई न बरते ।" ___ एक प्रस्तावके लिए फुट नोटमें लिखा है कि,-"जो वख अशुद्ध समझे गये हैं; उनका नवीन बनवाना तो बिलकुल ही बंद हो चुका है । केवल पिछले बने हुए, मौजूद हैं उनका किसी तरह घरमें उपयोग कर लेना खुला रक्खा गया है । श्रीमंदिरजीमें जाना और सामायिक, प्रतिक्रमण, देवपूजामें इन वस्त्रोंका उपयोग बिल्कुल नहीं करना; तथा अशुद्ध केसरका पूजामें उपयोग नहीं करना एवं अशुद्ध खाँडकी बनी मिठाई श्रीमंदिरजीमें नहीं चढ़ाना यह प्रतिज्ञा तो होशियारपुरमें श्रीमहाराज साहबके प्रवेश समय ही श्रीसंघ पंजाबने कर ली थी।" आपके उपदेशसे वहाँका मिडल स्कूल हाइ स्कूल बनाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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