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________________ आदर्श जीवन । महावीर जयन्ती भी बड़े ठाटबाटके साथ मनाई गई । वहाँ और भी महत्त्वकी बातें आपके उपदेश से आत्मानंद प्रकाशके उन्नीसवें वर्षके फाल्गुनके उद्धृत करते हैं । " ૪૦૮ Xx X अपवित्र केसरका पूजामें उपयोग नहीं करनेका ठहराव हुआ । प्रभु पूजाके समय हाथसे कते सूतका हाथसे बना हुआ खादीका कपड़ा ही पहनना, मिलका या चरबीवाला अपवित्र कपड़ा पहनकर प्रभुकी पूजा नहीं करना, अंगलूहने प्रभुके शरीर पोंछने के कपड़े भी ऐसे ही पवित्र होने चाहिए । मंदिरमें नैवेद्य देशी शक्करका ही रखना चाहिए इत्यादि स्तुत्य प्रस्ताव किये गये थे । " जिस समय आप पंजाब पधारे थे उस समय सारे देशमें खादीका दौर दौरा था । आपके हृदयमें जब ब्यावर में थे तभीसे विचार उठ रहा था कि, मिलके कपड़े पहनना धार्मिक दृष्टिसे अनुचित है या उचित ? अन्तमें आप इस परिणाम पर पहुँचे कि अनुचित है । कारण मिलके कपड़ोंमें चरबी लगती है और चरबी हिंसा हुए बिना नहीं आती इस लिए बीकानेर से ही आपने शुद्ध खादीका पहनना प्रारंभ कर दिया था । होशियारपुर से विहार कर आप फगवाडे पधारे । फगवाड़ेमें ढूँढिये और पुजेरे सभी श्रावकोंने आपका सामैया किया था । फगवाsसे विहार कर फिलोर पधारे । वहाँसे आहार करके Jain Education International हुई उन्हें हम अंकमेंसे यहाँ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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