SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन । ४०७ दिन मैं कोसों दूरसे आत्मानंद जैन कॉलेजकी बिल्डिंगको देख सकूँगा उसी दिन मैं समझूगा आपने सच्चे दिलसे मुझे मानपत्र दिया है। जिस दिन भारतवर्षके कौने कौनेमें यह चर्चा होगी कि जैनधर्मके सच्चे धारक-सच्चे ज्ञाता-साथ ही ऐहिक विद्यामें पारंगत तो आत्मानंद जैन कॉलेजहीसे निकलते हैं, उस दिन मैं समझूगा मेरे जीवनकी, बड़ीसे बड़ी ऐहिक साधनाको तुमने पूर्ण कर दिया है । जब तक ऐसा नहीं होता तब तक मैं समझूगा तुम्हारा 'आत्मारामजी महाराजकी जय' 'वल्लभ विजयजीकी जय' बोलना बुलाना और मेरा ग्रामानुग्राम पंजाबमें भ्रमण कर उपदेश देना सब निरर्थक हैं । शासन देव तुम्हें सद्बुद्धि और शक्ति दे कि, तुम इस कामको पूरा कर सको।" पंजाबके श्रीसंघमें एक बिजलीसी दौड़ रही थी। उस वक्त उनके हृदयमें जो भाव थे वे वर्णनातीत हैं। सैकड़ों आँखें स्वर्गीय गुरुदेवके स्मरणसे तर हो रही थीं। पंजाब श्रीसंघने उसी दिन पंजाब महाविद्यालय-कॉलेजके लिए चंदा लिखना शुरू किया। करीब दो लाख रुपये लिखे गये । पुरुषोंमें ही नहीं स्त्रियोंमें भी इतना उत्साह था कि अनेकोंने अपने जेवर उतार उतार कर विद्यालयके लिए दे दिये। तीन दिन जल्सा रहा । सार्वजनिक व्याख्यान भी होते रहे। पं. मदनमोहनमालवीय वहाँ आये थे । उनसे भी आपका श्रीजिमनमंदिरमें मिलना हुआ था। करीब आध घंटे तक भाप और मालावियाजी वातोलार करते रहे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy