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________________ ४०६ आदर्श जीवन। और हमारी सन्ताने अमरता लाभ करके सच्चे सुखको प्राप्त कर सकें। फाल्गुन शुक्ला ५ शुक्र-) हम हैं आपके तुच्छ सेवक, वार, सं० १९७८ समस्त पंजाबके जैन । ता. ३-३-२२ ) __ आपने इसके उत्तरमें कहा था कि,-" आप लोगोंने मेरा इतना सत्कार किया है, इसको मैं अपना नहीं प्रातःस्मरणीय गुरु महाराजका मान समझता हूँ और इसी लिए इसको ग्रहण करता हूँ। यदि आप लोगों में सच्ची गुरुभक्ति है, तो आप लोग अपने अन्तःकरणसे मेरा-नहीं गुरु महाराजका एक ऐसा स्मारक करो कि जिसके कारण स्वर्गीय गुरुदेवकी आत्माको परम संतोष हो, और मैं भी आनंदका उपभोग कर सकूँ। वह स्मारक है, पंजाबमें एक 'आत्मानंद जैनकॉलेज' की स्थापना करना । गुरु महाराज अकसर फर्माया करते थे कि, पंजाबमें जब देवस्थान काफी हो जायँगे तब सरस्वती मंदिर तैयार कराऊँगा । सज्जनो ! पंजाबमें देवस्थान काफी तादादमें बना कर आपने गुरुदेवकी एक भावनाको पूर्ण किया अब दूसरी भावनाको पूर्ण कर यानी सरस्वती मंदिर बनाकर गुरुदेवके आत्माको परम संतोष प्रदान कीजिए और गुरुऋणसे मुक्त होइए । "आपके मानपत्रकी सार्थकता मैं उसी दिन समझूगा जिस दिन आप यहाँ गुरु देवके नामका कॉलेज बना देंगे; जिस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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