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________________ आदर्श-जीवन। एक कोने में गठडीसी पड़ी दिखाई दी। वहाँ जाकर देखते हैं कि, छगनलाल सुकड़कर दोनों हाथों में सिर रख सो रहा है। वे स्तब्ध होकर खड़े हो रहे । आँखोंमें प्रेमाश्रु भर आये । हाय ! मेरा भाई इस दशामें पड़ा है । मैंने इसके संथारियादि साधुओंके से बिछोने छिपा दिये थे; मगर यह उनके बगेर भी आरामसे सो रहा है। सबसे पहले आज खीमचंदभाईके हृदयमें विचार आया कि मेरे किये कुछ न होगा; मेरा भाई शासनके लिए जन्मा है हमारे लिए, केवल कुटुंबके दायरेहीमें बंद रहनेके लिए नहीं। उन्होंने एक निश्वास डाला और पुकाराः" छगन !" आप उठ बैठे और आँखं मलते हुए पूछाः-" क्या ? " खीमचंदभाईने पूछाः- क्या बिस्तरे नहीं थे सो जमीनपर सो रहा है ? लोग मुझे क्या कहेंगे ? " आप बोले:- कोई कुछ न कहेगा; और किसीके कहने सुननेसे क्या नियम तोड़ दिया जाता है ? ". इतनेहीमें रुक्मणी बहिनने आकर आपको संयारियादि दे दिये और खीमचंदभाईसे कहा:-" भाई, छगनको इसके रस्ते जाने दो; फिजूल दुःख न दो। यह घरमें बैठा है इतना ही हमारे लिए बहुत है।" १. गुजरातमें स्त्रियाँ भी बरातोंमें जाया करती हैं। ऐसा रिवाज है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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