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________________ आदर्श जीवन | जाऊँगा । " आखिर सबके दबाव से आपने व्याहमें जाना स्वीकर कर लिया । साधकोंके लिए संसार में कठिनाइयाँ हमेशा आया करती हैं । ये कठिनाइयाँ ही साधककी उच्चताका सबसे पहले परिचय कराती हैं। खीमचंदभाई समझते थे कि अब छगन सत्र वैराग्य भूलकर ठिकाने लग जायगा । मगर उन्हें यह ज्ञात न था कि, कुदरत उन्हें ही अपना विचार छोड़ देनेका आग्रह करेगी । २९ शामको बरात रवाना होकर मामाकी पोलमें ठहरी। स्टेशन वहाँसे नजदीक था और सवेरे जल्दी खाना होना था इसीलिए बराती यहाँ आ रहे थे । - आपको वह जगह मालुम थी इसलिये सबके पहले ही आप वहाँ पहुँच गये और प्रतिक्रमण कर एक कोने में खेस ( दुपट्टा ) बिछा सो रहे । । 1 रात आई । सब लोगोंने अपने अपने सोनेका इन्तजाम किया । खीमचंदभाई अबतक तो गड़बड़ी में लगे हुए थे। सोनेके वक्त छगनकी सुध आई। उसे न देखकर घबरा गये । सोचा,-- मौका पाकर भाग तो नहीं गया है । मगर वापिस उन्हें खयाल आया कि, छगन जबानका सच्चा है । जब उसने ही चंदभाईको उनकी आज्ञाके विना कहीं न जानेका बचन दे दिया था तब वह जायगा तो नहीं; फिर वह गया कहाँ ? इधर उधर खोजते उन्हें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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