SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 434
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन । सोजतसे विहारकर आप बिलावस पधारे । वहाँ मंदिर मार्गी एक ही श्रावक पक्का था। आपने वहाँ चार दिन रहकर उपदेश दिया । वहाँ साठ श्रावक जो कच्चे पक्के ढूँढिये थे, वे सभी मूर्तिपूजक हो गये । स्थानकवासियोंके परिचय और उपदेशसे स्त्रियोंने मासिकधर्म पालना छोड़ दिया था, सो आपके उपदेशसे वापिस पालने लगीं। वहाँ पंचोंने ठहराव करके यह बात भी लिख ली कि आजसे जिनके घरकी स्त्रियाँ मासिक धर्म नहीं पालेंगी उन पर पाँच रुपये जुर्माना होगा । वहाँ सब लोगोंके लिए पूजाका आवश्यक सामान भी आपके उपदेशसे एक श्रावकने मँगवा लिया । कई पूजाप्रभावनाएँ भी हुई। वहाँसे आपने कापडीजीकी तरफ विहार किया । विलावसके नगरसेठ गुलाबचंद्रजी आदि पन्द्रह आदमी भी आपके साथ गये । तीन दिनमें आप कापर्डाजी पहुँचे । कापर्डाजी से आप भावी पधारे। वहाँ सौ घर हैं मगर सभी स्थानकवासी हैं । उनमेंसे एक श्रावकने पूजा करनेका नियम लिया | पधारे । वहाँ दो नोकारसियाँ और वहाँसे पाँच कोस पर एक गाँव है । उसमें वैष्णवी एक जाति है । वह खेती करती है । वह खेतोंमें कई बार आग लगा दिया करती है सो नहीं, लगानेका उसने आपके उपदेशसे नियम ले लिया । वहाँ तीन दिन तक आपके और पंन्यासजी महाराज ललितविजयजीके व्याख्यान होते रहे । भावी से बिलाड़ा प्रभावनाएँ हुई । Jain Education International For Private & Personal Use Only ३८९. www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy