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________________ आदर्श जीवन । - वहाँसे फिर आप काप जी पधारे । वहाँ मेले पर पाँच हजार आदमी आये थे । उसमें एक सधर्मीवात्सल्य हुआथा । लोंगोंको ठहरनेकी तकलीफ होती थी इस लिए आपने उपदेश देकर वहाँ धर्मशाला वनवानेकी नींव डलवाई। वहाँसे आपने ब्यावरकी तरफ विहार किया और जेतारण पहुँचे । जेतारणसे दो कोस पर एक गाँव है । उसमें सभी श्रावक ढूंढिये हैं। उस गाँवमें आपने एक सार्वजनिक व्याख्यान दिया था। उसमें छःसात आदमियोंने दर्शन करनेका नियम किया। एक आदमीने पूजाका भी नियम किया । वहाँके जागीरदारके अन्तःपुरके पास जिनालय था; मगर कोई श्रावक वहाँ नहीं जाता था । इस लिए वह मंदिर जागीरदारने अपने अन्तः पुरमें मिला लिया और मूर्ति एक महात्माके यहाँ उपाश्रयमें रख दी थी । खुशीकी बात है कि श्रावकोंने नया मन्दिर बनवानेकी योजना करली है।। __ वहाँसे आप वरकेघाट पधारे । गाँवमें सभी ढूँढिये हैं, परन्तु आपका व्याख्यान सुनने सभी आते थे। वहाँसे आप अमरपुरा स्टेशनकी धर्मशालामें जाकर ठहरे । नये शहरके लोग वहाँ वंदना करने आये थे। एक नौकारसी भी वहाँ हुई थी। वहाँसे दूसरे दिन सं० १९७७ के फागण वदि १ के दिन आप ब्यावर पधारे । बड़े समारोहके साथ आपका नगरप्रवेश हुआ । अठाई महोत्सव वहाँ शुरू था। आपके पधा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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