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________________ आदर्श जीवन अब रहा ही नहीं । लगे चौमासेके लिए जोरसे विनती करने । कुछ महाराजजीकी सलाह होने लगी थी, अभी विनती स्वीकारी न थी, इतनेमें खुडाले ( स्टेशन फालना) के श्रीसंघके मुखिया बालीके कई श्रावकोंके साथ विनतीके लिए आ पहुँचे । खुडालेके श्रीसंघकी पहलेसे ही चौमासेके लिए विनती थी; परंतु जिस लाभके लिए गोडवाड़में रहना था वह होता नजर न आनेसे ही आप गोडवाड़को छोड़ बीकानेरकी तरफ जाना चाहते थे। क्योंकि बीकानेरके श्रावक सेठ सुमेरमलजी सुराणा और सेठ लक्ष्मीचंदजी कोचरने बीकानेरमें चलती पाठशालाको स्थायीरूपमें बना देनेकी पूरी पूरी आशा दी थी। वाचकवृन्द ! आप देखते ही आये हैं कि हमारे चरित्रनायकको जैनसमाजमें तालीमके प्रचारकी धुन लगी हुई है, जो कि अबतक उसी तरह चली जा रही है। खुडाला और बालीके श्रावकोंने कहा आप पधारिए हम आपकी इच्छानुसार कार्य करनेको तैयार हैं। यदि सादड़ीका श्रीसंघ मान लेवेगा तो सारे गोडवाडका जैनविद्यालय बना दिया जायगा; अन्यथा हम दोनों मिलकर यथाशक्ति उद्यम करेंगे। फिर धीरे धीरे आगेको काम बढ़ता जायगा; परंतु आपके पधारे विना कुछ भी बननेवाला नहीं है।" आपको खयाल था कि, बालीकी रकम पंन्यासजी श्रीसोहनविजयजी और ललित विजयजीके चौमासेमें और कुछ चौमासेके बादमें मिलाकर ७०-८० हजारके लगभग लिखी गई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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