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आदर्श जीवन।
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वाह उनके पूर्वजोंके संचित धनपर, जमीं जायदाद पर और वैद्यक, ज्योतिष एवं यंत्र मंत्र पर होता है । श्रावकोंके भक्तिभाव पर नहीं । श्रावकोंके नहीं माननेका मुख्य कारण यह है कि उन्हें यतियोंके विषयमें यह शिकायत है कि यति संयम बराबर नहीं पालते हैं। ऐसी दशामें भी कुछ यति ऐसे हैं जो सब तरहके सुख साधनोंके होते हुए भी प्रायः संयमी हैं और जिनपर उनके श्रावकोंकी पूर्ण श्रद्धा है।
उदयपुरनिवासी यतिजी श्रीगुलाबचंद्रजी और उनके शिष्य यतिजी श्रीअनूपचंद्रजी भी ऐसे ही हैं। गुरु शिष्योंका शहरमें बड़ा मान है। कोठारी बलवंतसिंहजी आदिकी बड़ी बड़ी हवेलियोंमें, जनानेमें, किसी यतिको जाने नहीं देते; मगर इन गुरु शिष्योंके लिए कहीं मनाई नहीं है। इनका उपाश्रय कसेरोंकी ओल ( गली ) में है । इस ग्रंथके लेखकका घर उनके उपाश्रयसे सटा हुआ था । और बचपनमें इस, लेखकने उन्हींके यहाँ शिक्षा प्राप्त की । कुटुंब परिवारके लोग वैष्णव धर्मके धारक हैं, परन्तु इन पंक्तियोंका लेखक आज जैनधर्मको पालता है इसका कारण ये ही दोनों गुरु शिष्य हैं। ___ यतिजी अनूपचंद्रजी प्रायः साधु मुनिराजोंके पास जाया करते हैं और उनकी सेवा भक्ति भी किया करते हैं । उनकी
और सिरसानिवासी यति श्रीप्रतापचंद्रजीके शिष्य यति श्री मनसाचंद्रजीकी उदयपुरमें एक पुस्तकालय खोलनेकी इच्छा
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